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Skip to contentडॉ. शिव चौरसिया लोकभाषा मालवी के प्रभावी कवियों में अग्रगण्य है। 23 दिसम्बर 940 को मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले के ग्राम बेरछा में जन्मे डॉ. चौरसिया का बचपन अभाबों में और समूचा जीवन संघर्षों में बीता। बावजूद इसके 'ठेठ मालवी मनक की जिजीविषा उनके तन, मन, जीवन में अदम्य रही, जिसने उनके हृदय के कवि को युवावस्था से आज तक जीवंत और सक्रिय बनाए रखा है। उनकी सरस कविताओं में मालवा की चहक और महक कवि मंचों से लेकर विश्वविद्यालय की पाठ्यपुस्तकों तक, श्रोताओं से पाठकों तक को आकर्षित और प्रेरित करती है। जीवन संघर्ष के बीच जीवन रस के संचय, संरक्षण और वितरण का यही भाव डॉ. चौरसिया को मालवी कविता की सुदीर्घ परम्परा में एक पृथक और विशिष्ट पहचान देता है। 'माटी की सोरम' के बाद उनका दूसरा काव्य संकलन है 'असो मालवो है म्हारो!'
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