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30 दिसम्बर 1971 को उज्जैन में जन्म। हिंदी साहित्य में एमए, एम फिल और पीएचडी। क़रीब 25 साल सक्रिय पत्रकारिता। आठ साल दैनिक भास्कर के उज्जैन संस्करण के सम्पादक भी। इन दिनों स्वतंत्र पत्रकार।
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पत्रकारिता के साथ पौराणिक साहित्य के अध्येता है। अब तक धर्म प्रश्न, जल देवता, कुम्भनामा, ज़िन्दगी का टिफ़िन लाया हूँ, वे लोग वे लम्हें, द्रौपदी के मन का पाँचवा टुकड़ा, गुनो भई साधो और मन से बड़ा न कोय शीर्षक से आठ पुस्तकें प्रकाशित।
'गुनो भई साधो' शीर्षक से अखबारों में स्तम्भ और सोशल मीडिया पर निरन्तर पोस्ट लिखते हैं। साहित्य, संस्कार, संस्मरण और सरोकार के आग्रह के बीच नई पीढ़ी को भारतीय जीवन मूल्यों से परिचित कराने के लिए प्रतिबद्ध है। 'कहत कबीर सुनो भई साधो' की तर्ज़ पर गढ़े अपने नारे में वे सुनो से एक कदम आगे गुनो का निवेदन करते हैं। इसलिए उनका नारा है 'गुनो भई साधो'!
डॉ. चौरसिया कथा के सूत्र को अपनी विशिष्ट शैली में पकड़ते हैं और शास्त्र की मर्यादा का अनुपालन करते हुए समसामयिक सन्दर्भो में हर आयु वर्ग के लिए उपयोगी सार-सन्देश को सजीव चित्रण के साथ प्रकाश में लाते हैं। उनके लेखों में पत्रकार की नज़र, शास्त्र की गरिमा, भारतीय संस्कृति का बोध और सम्प्रेषणीयता का प्रभाव पाठकों को चमत्कृत भी करता है और जीवन को सार्थक बनाने का सन्देश भी देता है।
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